जुल्फों को बादल ,आँचल को झरना ,मोहब्बत को काम समझ बैठे थे
लोगों ने दीवाना क्या कह दिया हम उसे अपना नाम समझ बैठे थे
मेरी जिंदगी के उजाले तेरे हिस्से में आये तो क्या गम है
हम ही तो थे जो तेरे अंधेरों से प्यार कर बैठे थे
मुडती रही राह इस कदर फिर भी नादान इतना समझ न पाए
कि वापस वहीं आ पहुचेंगे जहाँ से आगाज कर बैठे थे
मेरे लफ्जों का गुलदस्ता तेरे घर पहुंचे तो याद करना
हम वही हैं जो एक बेवफा से वफ़ा का इजहार कर बैठे थे....
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