इंसान ही इंसानियत को लूटता रहा,
पत्थर, बस भगवान बना, देखता रहा।
कागज को रद्दी कर दिया आज उसी ने,
स्कूल पर, पत्थर जो कल तक फेंकता रहा।
है सफल नेता वही बस आज के इस दौर में,
भाइयों में लगा आग, जो सेकता रहा।
काम गधे सा करे सो गधा ही तो है,
क्या हुआ जो रास्ते भर रेंकता रहा।
कर रहा है छलनी सीना वही अपना सा,
दशकों जिससे भाईचारा, एकता, रहा।
हाथ जोड़े सांझ, उसी से भीख मांगे है,
दिन भर, शिव, कृष्ण, जो बेचता रहा।
सफलता का अमृत चखा, है उसी ने आज,
जो कभी घुटने कहीं ना टेकता रहा।
जाग अब भी, उठ खड़ा हो, कुछ तो कर दिखा,
बन सका न कुछ, स्वप्न, जो बस देखता रहा।
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