कोई सोना चढाए , कोई चाँदी चढाए
कोई हीरा चढाए , कोई मोती चढाए
चढाऊँ क्या तुझे भगवन कि ये निर्धन का डेरा है
अगर मैं फूल चढाता हूँ , तो वो भँवरे का झूठा है
अगर मैं फल चढाता हूँ , तो वो पक्षी का झूठा है
अगर मैं जल चढाता हूँ , तो वो मछली का झूठा है
अगर मैं दूध चढाता हूँ , तो वो बछडे का झूठा है ;
चढाऊँ क्या तुझे भगवन कि ये निर्धन का डेरा है
अगर मैं सोना चढ़ाता हूँ , तो वो माटी का झूठा है
अगर मैं हीरा चढ़ाता हूँ , तो वो कोयले का झूठा है
अगर मैं मोती चढाता हूँ , तो वो सीपो का झूठा है
अगर मैं चंदन चढाता हूँ , तो वो सर्पो का झूठा है
चढाऊँ क्या तुझे भगवन, कि ये निर्धन का डेरा है
अगर मैं तन चढाता हूँ , तो वो पत्नी का झूठा है
अगर मैं मन चढाता हूँ , तो वो ममता का झूठा है
अगर मैं धन चढाता हूँ , तो वो पापो का झूठा है
अगर मैं धर्म चढाता हूँ , तो वो कर्मों का झूठा है
चढाऊँ क्या तुझे भगवन , कि ये निर्धन का डेरा है
तुझे परमात्मा जानू , तू ही तो है मेरा दर्पण
तुझे मैं आत्मा जानू , करूँ मैं आत्मा अर्पण..