Friday 27 July 2018

कुछ बेपरवाह और बेहद बेफिक्री सा गुजरा था …

कुछ बेपरवाह और बेहद बेफिक्री सा गुजरा था । 


पलट कर देखा तो पता लगा वो मेरे जीवन का सबसे मासूम टुकड़ा था । 


अरे अब जहन में आया वो तो धुल में लिपटा हुआ मेरा सुनहरा बचपन था । 


मेरा चिल्लरो से भरा खन खन करता वो गुल्लक, वो छुपम छपाई कड़ी दुपहरी में भी देती थी ठंडक ।


 वो बारिश के पानी में कागज की ढेरो नाव चलाना ,वो मीठी गोलिया भी लगती थी खुशियों का खजाना । 


छुट्टी के दिन सारा मोहल्ला नाप लेते थे ,उन झूठ-मूठ के खेलो को भी बड़ी सच्चाई से खेलते थे। 


वो स्कूल के बस्तों को हर रोज सजाना ,वो स्कूल में ही कभी पेन्सिल कभी रबड़ का खो जाना । 


वो छुट्टी की घंटी बजते ही यूँ दौड़ लगाना, न जाने कहा खो गया वो मनमौजी जमाना । 


उन गर्मी की छुट्टियों में हुल्लड़ मचाना , शाम को माँ की डांट सुनकर ही घर वापस जाना । 


उन रेत के ढेरों से सुन्दर आशियाँ बनाना , कितनी आसान लगती थी ये जिंदगी । 


बड़ा ही नासमझ था वो गुजरा हुआ बचपन का जमाना । 


वो दोस्तों से झगड़ना वो रूठना मनाना , वो परीक्षा की घड़िया ,वो किताबों का जमाना । 


बचपन में होती थी त्योहारों की असली ख़ुशी ,अब तो हर त्यौहार लगता है एक आम सा दिन । 


न जाने कहा खो गये  वो  सब नादान असली चेहरे , बड़े होकर लगा लिए सबने चेहरे पे न जाने कितने चेहरे । 


काश वो बेफिक्री के दिन मै फिर से जी सकती , काश उन  दिनों में वापस जा के कुछ देर ठहर सकती । 


बचपन: छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है, 

जो छोड़ा उसे पाने का मन है, 

जो पाया है उसे भूल जाने का मन है।
 


 छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है, 

खर्चा बहुत सारा जोड़ा बहुत कम है।


  

छोड़ा बहुत पीछे वो प्यारा छोटा-सा घर, 

छोड़ा मां-बाबूजी के प्यारे सपनों का शहर।


 

छोड़े वो हमदम वो गली वो मोहल्ले, 

छोड़े वो दोस्तों के संग दंगे वो हल्ले।


 

छोड़े सभी पड़ोस के वो प्यारे-से रिश्ते,

छुट गए प्यारे से वो सारे फरिश्ते।


 

छूटी वो प्यार वाली मीठी-सी होली,

छूटी वो रामलीला छूटी वो डोल ग्यारस की टोली। 


 

छूटा वो रामघाट वो डंडा वो गिल्ली, 

छूटे वो 'राजू' वो 'दम्मू' वो 'दुल्ली'।


 

छूटी वो मां के हाथ की आंगन की रोटी, 

छूटी वो बहनों की प्यारभरी चिकोटी।


 

छूट गई नदिया छूटे हरे-भरे खेत, 

जिंदगी फिसल रही जैसे मुट्ठी से रेत।


 

छूट गया बचपन उस प्यारे शहर में, 

यादें शेष रह गईं सपनों के घर में। 


बदलते हुए समय कि बदलती तस्वीर,😥


गाँव में *नीम* के पेड़ कम हो रहे है,
घरों में *कड़वाहट* बढती जा रही है !
जुबान में *मीठास* कम हो रही है,
शरीर मे *शुगर* बढती जा रही है !

किसी महा पुरुष ने सच ही कहा था की जब *किताबे* सड़क किनारे रख कर बिकेगी
          और
*जूते* काँच के शोरूम में तब समझ जाना के लोगों को ज्ञान की नहीं जूते की जरुरत है।

Thursday 26 July 2018

यादें बरसात की....

बरसात के वो हसीन पल

गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू से

एक याद चली आती है 

भीगती थी जब पानी में 

वो बरसात याद आती है 

 

भूल जाती छत्री जानबूझकर

और भीगते घर आती थी

चाय की चुसकी लेते जो मुस्कान छुपाती

वो शरारत याद आती है

 

ज़माना था वो रेडियो का

गानों की भी बरसात होती थी

बारिश और गीत में जो होती जुगलबंदी

वो मधुर रात याद आती है


Sunday 22 July 2018

आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम, आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम..

आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम

आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम

आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम


आजकल किसी को वो टोकता नहीं,
चाहे कुछ भी किजीये रोकता नहीं
हो रही है लुट मार फट रहे हैं बम
आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम


किसको भेजे वो यहाँ हाथ थामने
इस तमाम भीड़ का हाल जानने
आदमी हैं अनगीनत देवता हैं कम
आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम


जो भी है वो ठीक है ज़िक्र क्यों करें
हम ही सब जहाँ की फ़िक्र क्यों करें
जो भी है वो ठीक है ज़िक्र क्यों करें
हम ही सब जहाँ की फ़िक्र क्यों करें
जब उसे ही ग़म नहीं तो क्यों हमें हो ग़म
आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम

फ़िल्म: फिर सुबह होगी / Phir Subah Hogi (1958)
गायक/गायिका: मुकेश
संगीतकार: खय्याम
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अदाकार: राज कपूर, माला सिन्हा, रहमान

दो सखियाँ बचपन की ......

दो सखियाँ बचपन की ...
एक सिहांसन पर बैठे और रूपमती कहलाये
दूजी अपने रूप के कारण गलियों में बिक जाए !!

Do boondein saawan ki
Haay do boondein saawan ki
Ek saagar ki sip me tapake
Aur moti ban jaaye

Duji gande jal me girakar
Apna aap gavaaye
Kisako mujarim samajhe
Koi kisako dosh lagaaye

Haa kisako dosh lagaaye
Do boondein saawan ki
Haay do boondein saawan ki

Do kaliyaan gulashan ki
Haay do kaliyaan gulashan ki
Ek sehare ke bich gudhe
Aur man hi man itaraaye

Ek arthi ki bhet chadhe
Aur dhuli me mil jaaye
Kisako mujarim samajhe
Koi kisako dosh lagaaye

Haa kisako dosh lagaaye
Do kaliyaan gulashan ki
Haay do kaliyaan gulashan ki

Do sakhiyaan bachapan ki
Haay do sakhiyaan bachapan ki
Ek sihaasan par baithe
Aur rupamati kahalaaye

Duji apane rup ke kaaran
Galiyo me bik jaaye
Kisako mujarim samajhe
Koi kisako dosh lagaaye
Haa kisako dosh lagaaye
Do sakhiyaan bachapan ki.

इंसान ही इंसानियत को लूटता रहा...

इंसान ही इंसानियत को लूटता रहा,
पत्थर, बस भगवान बना, देखता रहा।
कागज को रद्दी कर दिया आज उसी ने,
स्कूल पर, पत्थर जो कल तक फेंकता रहा।
है सफल नेता वही बस आज के इस दौर में,
भाइयों में लगा आग, जो सेकता रहा।
काम गधे सा करे सो गधा ही तो है,
क्या हुआ जो रास्ते भर रेंकता रहा।
कर रहा है छलनी सीना वही अपना सा,
दशकों जिससे भाईचारा, एकता, रहा।
हाथ जोड़े सांझ, उसी से भीख मांगे है,
दिन भर, शिव, कृष्ण, जो बेचता रहा।
सफलता का अमृत चखा, है उसी ने आज,
जो कभी घुटने कहीं ना टेकता रहा।
जाग अब भी, उठ खड़ा हो, कुछ तो कर दिखा,
बन सका न कुछ, स्वप्न, जो बस देखता रहा।

।।नसीब अपना अपना।।

*"जरूर कोई तो लिखता होगा...*
*कागज और पत्थर का भी नसीब...*
*वरना ये मुमकिन नहीं की...*
*कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाये...*
*और...*
*कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता बन जाये"...!*

Tuesday 17 July 2018

रोटी का कोई धर्म नहीं होता पानी की कोई जाति नहीं होती..

हिन्दू धर्म से नफरत करो ये कुरान नहीं कहता,
भारत की मस्जिदे तोड़ो ये श्रीराम नहीं कहते
रोटी का कोई धर्म नहीं होता
पानी की कोई जाति नहीं होती
जहा इंसानियत जिन्दा है
वहाँ मजहब की बात नहीं होती
किसी को लगता है हिन्दू खतरे मे है
किसी को लगता है मुसलमान खतरे मे है
धर्म का चश्मा उतार कर देखो पता चलेगा की
भ्रष्ट नेताओं के कारण हमारा हिंदुस्तान खतरे मे है

Thursday 12 July 2018

*रावण बनना भी कहां आसान....*

रावण में अहंकार था
तो पश्चाताप भी था

रावण में वासना थी
तो संयम भी था

रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी
तो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था

सीता जीवित मिली ये राम की ही ताकत थी
पर पवित्र मिली ये रावण की भी मर्यादा थी

राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..
दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था...!!

महसूस किया है कभी
उस जलते हुए रावण का दुःख
जो सामने खड़ी भीड़ से
बारबार पूछ रहा था.....
*"तुम में से कोई राम है क्या ❓"*
😡

Sunday 1 July 2018

नफरतों का असर देखो, जानवरों का बटंवारा हो गया, गाय हिन्दू हो गयी ; और बकरा मुसलमान हो गया.....

मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..
नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.
मंदिरो मे हिंदू देखे,
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.
ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं
सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू औरखजूर मुसलमान हो गए..
न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......
मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....
जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है
कि हरा मुस्लिम का है
और लाल हिन्दू का रंग है
तो वो दिन दूर नही
जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी
और
हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा.......