Friday, 26 April 2024

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं 


और क्या जुर्म है पता ही नहीं 

इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं 

मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं 

ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है 

दूसरा कोई रास्ता ही नहीं 

सच घटे या बढ़े तो सच न रहे 

झूट की कोई इंतिहा ही नहीं 

ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ 

ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं 

जिस के कारन फ़साद होते हैं 

उस का कोई अता-पता ही नहीं 

कैसे अवतार कैसे पैग़मबर 

ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं 

चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो 

आईना झूट बोलता ही नहीं 

अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है 

'नूर' संसार से गया ही नहीं

कृष्ण बिहारी नूर


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