Tuesday 21 July 2015

बात होने को ये ज़रा सी है.........

"ये ख़यालों की बदहवासी है,
या तेरे नाम की उदासी है ?
अश्क़ चेहरे के मरुस्थल में हैं ,
आँख पानी के घर में प्यासी है .
आइने के लिए तो पुतलीं हैं ,
एक क़ाबा है एक काशी है .
तुमने हमको तबाह कर डाला ,
बात होने को ये ज़रा सी है..!"

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